Monday, 16 March 2015

एंटीबायोटिक दवाइयां-माइंक्रोफ्लोरा : नष्ट करती है


एंटीबायोटिक दवाइयां-माइंक्रोफ्लोरा : नष्ट करती है

एंटीबायोटिक दवाइयां सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा बनाई जाती हैं जो दूसरे-जीवाणुओं को मार देती हैं। परन्तु मानव शरीर पर कम प्रभाव डालती हैं। बैक्टीरियल एंटीबायोटिक दवाएं ‘ब्राड स्पैक्ट्रम’ प्रभाव वाली होती है। वे तुरंत आराम देती है। एलैग्जैण्डर फ्लेमिंग ने 1928 में पैंसिलीन दवाई का निर्माण उल्ली पैनीसीलियमनोट्रेटेक द्वारा किया। एक्टीनोमाईसीन, स्टैप्टोमाईसीन आदि दवाओं का निर्माण 1942 को हुआ था। पिछले पचास वर्षों में 7000 एटीबायोटिक दवाओं का निर्माण हुआ है। हर वर्ष 300 ने एंटीबायोटिक खोजे जाते हैं। यह दवाएं-बैसीलस और सूडोमोनस बैक्टीरिया से बनती है। स्ट्रेप्टामाइसीज ग्रुप में 40 से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं बनती हैं- दवाओं के अतिरिक्त-मछली और मीट की प्रिजर्व करने में भी प्रयोग होते हैं। टीबी के 20 प्रतिशत से ज्यादा लोगों पर एंटीबायोटिक दवा का भी असर नहीं होता। इनसे दस्य या डायरिया होने का खतरा रहता है।
हमारी आंतों में ई-कोलाई लाभदायक बैक्टीरिया रहते हैं वह हमारे लिये विटामिन बी. और के.बनाते हैं। वे भी नष्ट हो जाते हैं। अत: हमारी आंतों का माईक्रोफ्लोरा बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है- दवाइयां लेते समय सदा सावधानी बरतें।
* एंटीबायोटिक लाभदायक तो होते हैं परन्तु वे हमारे शरीर के माइक्रोफ्लोरा पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। अंतड़ियों में पनपने वाले लाभदायक बैक्टीरिया को मार देते हैं।
* अत: किसी योग्य डाक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक दवाइयां प्रयोग में न लाएं। जब किसी दवाई का कोर्स शुरू करें तो कोर्स पूरा करके ही दवाई छोड़ें।
* ज्यादा शक्तिशाली एंटीबायोटिक प्रयोग में न लाएं। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
* वायरल इन्फैक्शन के लिये एंटीबायोटिक दवा न लें। जुकाम के लिए एंटीबायोटिक न खाएं

kumarhealth.blogspot.in

Monday, 2 March 2015

Cervical Cancer Awareness | सर्विक्स का कैंसर



भारतीय महिलाओं में सबसे अधिक सरविक्स का कैंसर होता है, और यह सबसे अधिक, कैसर के द्वारा, मौत का कारण होता है।
Female genitalia

1.  "सर्विक्स" किसको कहते हैं?

  • स्त्री के बच्चादानी या गर्भ में तीन भाग होते हैं - युटेरस, सरविक्स और वजाईना। बच्चादानी के उपर के भाग को युटेरस को कहते हैं, जिसमे गर्भ ठहरता है। वजाईना बच्चादानी के बाहरी मुंह को कहते हैं, जिससे बच्चा पैदा होता है। इन दोनों के बीच के हिस्से को सर्विक्स कहते है।
  • सर्विक्स, बीच में, एक रास्ता का काम करता है।
    • जब गर्भ नहीं होता है, तो सर्विक्स के द्वारा मासिक धर्म होता है।
    • गर्भ के दौरान, सर्विक्स का मुहं बंद रहता है, जिससे की गर्भ में अजन्मा बच्चा सुरक्षित रहता है।
    • प्रसव के दौरान, सर्विक्स का मुंह खुल जाता है, और बच्चा पैदा होता है।

2.  "सर्विकल कैंसर" किसको कहते हैं?

  • सर्विक्स में कैंसर को सर्विकल कैंसर कहते हैं|

Cancer | कैंसर



1.  कैंसर का प्रकोप

2.  सर्विक्स का कैंसर (Cervix)

3.  स्तन या ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer)

Pink Ribbon for Breast Cancer Awareness
ब्रेस्ट कैंसर का चिन्ह

Deep Vein Thrombosis | डीप वेन थ्रोम्बोसिस



1.  किसे कहते हैं?

जब खून के नसों में खून का थक्का जम जाता है, उसेथ्रोम्बोसिस कहते हैं| अगर यह शरीर के भीतरी नसों में होता है, तो उसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस कहते हैं| यह अकसर पैर के नसों में होता है|

2.  क्या महत्व है?

अगर यह जमा हुआ खून का थक्का, पैर से निकल कर फेफड़ों तक पहुंच जाता तो यह भयानक बीमारी कर सकता है या फिर जानलेवा भी हो सकता है|

3.  क्यों होता है?

डी वी टी खून के जमने से होता है| इसके विभिन्न कारण हैं, लेकिन मुख्य रूप से दो प्रकार के कारण हो सकते हैं|
  • पहला, की खून का बहाव धीरे है या रुक गया है| उदाहरण के लिए नीचे अनेक स्थिती दिए गए हैं, जिसमें कि पैर का उपयोग कम होता है -
    • किसी बीमारी या गर्भ में बिस्तर पर लेटे रहना पड़ रहा है|
    • आप अधिकतर खड़े होकर काम करते हैं, जैसे कि अध्यापक, नर्स, सर्जन या अन्य|
    • आप लंबे समय तक पैर नहीं चलाते हैं, जैसे कि बहुत देर का विमान यात्रा|
  • दूसरा कि खून में जमने का प्रवृती बढ़ गया है| खून में अनेक प्रकार के चीज होते हैं, कुछ का काम होता है किसी कटने पर खून को जमाना और कुछ का काम होता है कि खून के नसों के अंदर खून को बहने देना| सामान्य स्थिती में, ये दोनों तरह के पदार्थ संतुलित मात्रा में रहते हैं| अगर किसी कारण से यह संतुलन बिगड़ता है, तो नसों के अंदर खून जम सकता है| उदाहरण के लिए नीचे अनेक स्थिती दिए गए हैं -
    • किसी भी प्रकार का सर्जरी, जो कि पैर, जांघ, कमर या पेल्विस पर किया गया हो|
    • कैंसर होने से डी वी टी का खतरा बढ़ जाता है|
    • धूम्रपान करने से डी वी टी का खतरा बढ़ जाता है|
    • दिल का बीमारी जिसमें दिल कमजोर हो जाता है | इसे कांजेसटिव हार्ट फैलिअर (congestive heart failure) कहते हैं| इस स्थिती में दिल पूरे तरह से खून को पम्प करने में सक्षम नहीं होता है, और खून पैरों में जमा होने लगता है|
    • पैर के नसों के कमजोरी से जिसमें भी खून पैरों में जमा होने लगता है| सामान्य स्थिती में खून को पैर से दिल के तरफ लौटना चाहिए| इसमें पैर में एक तरफ जाने के लिए वाल्व होता है, जो खून का बहाव को दिल के तरफ रखता है| अगर नसों के वाल्व में कमजोरी आ जाता है, तो खून के बहाव में रुकावट आ जाता है, और फिर पैर में खून जमा होने लगता है|
    • अगर आप गर्भ निरोधक गोली (oral contraceptive pills) लेते हैं
    • अगर आपको मोटापा है
    • अगर आपको मेनोपौज़ (menopause) हो चुका है

4.  लक्षण

आधिकांश समय इसका कोई लक्षण नहीं होता है| लेकिन जब खून का थक्का जमा होने लगता है, तब इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं| कुछ लक्षण नीचे दिए गए हैं, जो कि पैर में होते हैं| यहां पैर से मतलब है तलवा से लेकर जांघ तक कोई भी जगह|
  • पैर का फूलना
  • पैर में दर्द होना
  • पैर लहर्ना
  • पैर में अत्यन्त खुजली होना
  • पैर का रंग बदलना - लाल या नीला पड़ जाना

5.  जांच

  • सोनोग्राम (sonogram) - मशीन द्वारा बाहर से नसों का फोटो खींचना
  • वेनोग्राफी (contrast venography) - नसों में सुई द्वारा एक तरह रंग दिया जाता, और फिर उसका फोटो खीचा जाता है
  • इम्पेडांस प्लेथिस्मोग्राफी (impedance plethysmography) - इसमें बिजली के तरंगों से इस रोग का निदान किया जाता है|

6.  इलाज

इसमें खून के थक्का को गलाने के लिए दवा लिया जाता है| यह दवा अस्पताल में शुरू किया जाता है| ये दवा खून को पतला करते हैं, इसीलिय अनेक बार खून का जांच किया जायेगा| ये दवा करीब 6 महीनों तक लेने पड़ सकते हैं| साथ ही उन कारणों को पहचानना होगा जिससे आपको यह बीमारी हुआ, और उसे हटाने के लिए आपको उपाय करना होगा|

Blood Donor | रक्तदान करनेवाला



1.  रक्तदान के लिए खून कैसे चुनते हैं?

रक्तदान में दो व्यक्ति के बीच में खून का आदान-प्रदान होता है|
  • जो खून देता है, उसे डोनर (donor) कहते हैं|
  • जिसे खून प्राप्त होता है उसे रिसिपिएंट (recipient) कहते हैं|
अगर आप खून देना चाहते हैं आप किसको खून दे सकते हैं
आपके खून का प्रकार खून लेनेवाला का खून का प्रकार
(Donor) (Recipient)
   
ए पोजीटिव (A +) ए पोजीटिव (A +)
  एबी पोजीटिव (AB +)
   
ए नेगेटिव (A -) ए पोजीटिव (A +)
  ए नेगेटिव (A -)
  एबी पोजीटिव (AB +)
  एबी नेगेटिव (AB -)
   
बी पोजीटिव (B +) बी पोजीटिव (B +)
  एबी पोजीटिव (AB +)
   
बी नेगेटिव (B -) बी पोजीटिव (B +)
  बी नेगेटिव (B -)
  एबी पोजीटिव (AB +)
  एबी नेगेटिव (AB -)
   
ओ पोजीटिव (O +) ओ पोजीटिव ( O + )
  ए पोजीटिव (A +)
  बी पोजीटिव (B +)
  एबी पोजीटिव (AB +)
   
ओ नेगेटिव (O -) ए पोजीटिव (A +)
  ए नेगेटिव (A -)
  बी पोजीटिव (B +)
  बी नेगेटिव (B -)
  ओ पोजीटिव ( O + )
  ओ नेगेटिव (O - )
  एबी पोजीटिव (AB +)
  एबी नेगेटिव (AB -)
   
एबी पोजीटिव (AB +) एबी पोजीटिव (AB +)
   
एबी नेगेटिव (AB -) एबी पोजीटिव (AB +)
  एबी नेगेटिव (AB -)

Blood Recipient | खून प्राप्त करनेवाला



1.  रक्तदान के लिए खून कैसे चुनते हैं?

रक्तदान में दो व्यक्ति के बीच में खून का आदान-प्रदान होता है|
  • जो खून देता है, उसे डोनर (donor) कहते हैं|
  • जिसे खून प्राप्त होता है उसे रिसिपिएंट (recipient) कहते हैं|
अगर आपको खून चाहिये आप किससे खून प्राप्त कर सकते हैं
आपके खून का प्रकार खून देनेवाला का खून का प्रकार
(Recipient) (Donor)
   
ए पोजीटिव (A +) ए पोजीटिव (A +)
  ए नेगेटिव (A -)
  ओ पोजीटिव ( O + )
  ओ नेगेटिव (O - )
   
ए नेगेटिव (A -) ए नेगेटिव (A -)
  ओ नेगेटिव (O - )
   
बी पोजीटिव (B +) बी पोजीटिव (B +)
  बी नेगेटिव (B -)
  ओ पोजीटिव ( O + )
  ओ नेगेटिव (O - )
   
बी नेगेटिव (B -) बी नेगेटिव (B -)
  ओ नेगेटिव (O - )
   
ओ पोजीटिव (O +) ओ पोजीटिव ( O + )
  ओ नेगेटिव (O - )
   
ओ नेगेटिव (O -) ओ नेगेटिव (O - )
   
एबी पोजीटिव (AB +) ए पोजीटिव (A +)
  ए नेगेटिव (A -)
  बी पोजीटिव (B +)
  बी नेगेटिव (B -)
  ओ पोजीटिव ( O + )
  ओ नेगेटिव (O - )
  एबी पोजीटिव (AB +)
  एबी नेगेटिव (AB -)
   
एबी नेगेटिव (AB -) ए नेगेटिव (A -)
  बी नेगेटिव (B -)
  ओ नेगेटिव (O - )
  एबी नेगेटिव (AB -)

Lung Structure | फेफड़ा का बनावट

Lung Structure | फेफड़ा का बनावट

1.  फेफड़ा का बनावट के बारे में बतायें?

lungs
Lungs, Source: Wikipedia
  1. Trachea = ट्रेकिया
  2. Pulmonary artery = प्लमोनेरी आरटेरी
  3. Pulmonary vein = प्लमोनेरी वेंन
  4. Alveolar duct = अलवीयोलर डक्ट
  5. Alveoli = अलवीयोलाइ
  6. Cardiac notch = कार्डियाक नोच
  7. Bronchioles = ब्रोंक्यिओल्स
  8. Tertiary bronchi = टरशीयरी ब्रोंकाइ
  9. Secondary bronchi = सेकंडरी ब्रोंकाइ
  10. Primary bronchi = प्राइमरी ब्रोंकाइ
  11. Larynx = लेरिंक्स
शरीर में दो फेफड़े हैं। ये छाती में, दिल के दोनो ओर स्थित रहते हैं। हर फेफड़ा में खून के नस और सांस लेने के नलीयां का जटिल जाल फैला रहता है। इन करोडों सांस कि नलीयां से हवा का अदला-बदली का क्षेत्रफल बढ जाता है।
फेफड़ों और पेड़ में क्या संबंध है?
tree  tree-inverted  lungs
सांस लेने पर, हवा नाक से होते हुये, सांस कि नलियां द्वारा फेफड़ों तक पहुंचता है। सांस कि नलियों को समझने के लिये आप सोच सकते हैं किसी पेड़ के तरह। जैसे किसी पेड़ में एक मुख्य तना होता है, फिर विभाजित होकर शाखा निकलते हैं, और फिर अंगिनत विभाजन से अंगिनत छोटे-छोटे शाखा निकलते हैं, और उनसे टहनियां निकलते हैं, जिस पर अंत में पत्ते रहते हैं। पत्ते पेड़ को सांस लेने में मदद करते हैं। हर एक पत्ता, इस संगठन में सबसे छोटा युनिट या इकाई है। इस तरह के व्यवस्थापन से सांस लेने के लिय अंगिनत पत्ते, एक पेड़ को के मुख्य तना से लगे होते हैं। इन सभी सांस के नालियों के साथ अनगिनत खून के नालियां या रक्त वाहिकायें या blood vessel साथ में रहती हैं|
Blood Vessels in Lung
फेफड़ों में खून की नालियां, © Obscura
ठीक उसी तरह, सांस लेने के सबसे छोटे युनिट को अलवियोलस (alveolus) कहते हैं। बहुत सारे अलवियोलस जुड़ कर बनते हैं अलवियोलाइ (alveoli)। ये जिस सांस के नली पर रहते हैं, उसे अलवियोलर डक्ट (alveolar duct)। कहते हैं। ये सारे हवा के आदान-प्रदान में काम आते हैं, जिससे कि शुद्ध हवा खून को मिलता है, और अशुद्ध हवा खून से बाहर निकलता है।
जैसे कि पत्तों के समूह को अंगिनत टहनियां और शाखा मुख्य तना से जोड़ते हैं, उसी तरह इन अलवियोलाइ को अंगिनत सांस लेने के नलीयां, मुख्य तने से जोड़ते हैं। इन सांस लेने के नलीयां को इस तरह से नाम दिया गया है, बड़ा से छोटा के क्रम में, ट्रेकिया, प्राइमरी ब्रोंकाइ, सेकंडरी ब्रोंकाइ, टरशीयरी ब्रोंकाइ, ब्रोंक्यिओल्स, अलवियोलर डक्ट, अलवियोलाइ और अलवियोलस। ट्रेकिया या व्हिंडपाईप (Trachea, windpipe) मुख्य सांस लेने के नली को कहा जाता है। फेफड़ों में करीब 23 बार सांस लेने के नलीयां का विभाजन होता है। इसका मतलब है कि एक से दो, दो से चार, चार से आठ, आठ से सोलह, और इस तरह 23 से 24 बार।

2.  अलवियोलस (alveolus) के बारे में बतायें?

  • सामन्य व्यस्क में, दोनों फेफड़ों को मिलाकर, औसतन करीब 50 करोड़ अलवियोलस होता है।
  • सभी लोगों में अलवियोलस (alveolus) का माप (size) समान होता है।
  • एक अलवियोलस (alveolus) का माप (size) करीब 4.2 x 106 µm3 होता है।
  • 1 मिलीमिटर घनफल फेफड़ा में करीब 170 अलवियोलस होते हैं।
  • बडे लोगों में अलवियोलस का नंबर अधिक होता है।
  • फेफड़ों के बीमारी से या क्षति पहुंचने से, जैसे कि धुम्रपान से, अलवियोलस का नंबर बहुत कम हो जाता है। इससे फेफड़ों से सांस लेने में दिक्कत होता है।

3.  अधिक जानकारी के लिए

4.  संबंधित विषय

Color Blind | कलर बलाईंड

Color Blind | कलर बलाईंड

1.  कलर बलाईंड किसे कहते हैं?

रंग या रंगों के प्रति अंधापन को कलर बलाईंड कहते हैं। इससे किसी एक या अधिक प्रकार के रंग को सही तरह से देखने में दिक्कत होता है। अधिकतर लोगों में, यह स्थिती जन्म से होता है, और यह उनके सामान्य जीवन पर भी असर करता है। यह पुरुषों में, महिलाओं के अनुपात में, अधिक होता है। कुछ लोग को बाद में चोट लगने से, सर्जरी से और अन्य बीमारी के कारण भी कलर बलाईंड हो सकता है।

2.  सामान्य स्थिती में रंग कैसे दिखाई पडता है?

रंग को सही तरह से देखने के लिये, आंखों में विशेष प्रकार के सेल (cell) या कोशिका होते हैं जिन्हें कोंस (cones) कहा जाता है। ये कोंस तीन तरह के होते हैं, जो कि लाल, हरा और नीला देखने के लिये सक्षम होते हैं। इन तीनों प्रकार के सही रूप से काम करने पर सभी रंग अपने असली रूप में दिखते हैं। अगर इन कोंस में से किसी एक प्रकार का कोंस में समस्या है, तो कोई एक या अधिक प्रकार का रंग सही तरह से नहीं दिख सकता है।
रोशनी, उर्जा का रूप होता है। यह एक जगह से दूसरे जगह तक तरंग के रूप में प्रवाहित होता है; जैसे कि पानी में लहरें। सफेद रोशनी में तीनों रंग, लाल, हरा और नीले रंग का मिश्रण होता है। हरेक रंग अपने अलग तरंग पर चलता है। हर रंग का तरंग का लंम्बाई अलग होता है। लाल रंग का तरंग लंम्बा होता है, जिसे लोंग वेवलेंथ (long wavelength) कहते हैं, और इस प्रकार के तरंग को देखने के लिये एल-कोंस (L cones) चाहिये होता है। हरा रंग का तरंग मध्यम होता है, जिसे मिडीयम वेवलेंथ (medium wavelength) कहते हैं, और इस प्रकार के तरंग को देखने के लिये एम-कोंस (M cones) चाहिये होता है। नीला रंग का तरंग छोटा होता है, जिसे शोर्ट वेवलेंथ (short wavelength) कहते हैं, और इस प्रकार के तरंग को देखने के लिये एस-कोंस (S cones) चाहिये होता है। इन तीनों प्रकार के कोंस से प्राप्त सिग्नल के अनुपात से दिमाग को समझ आता है कि किसी वस्तु का क्या रंग है?

3.  कलर बलाईंड कितने प्रकार के होते हैं?

Normal Vision of Flowers
Normal Vision
रंग को पहचानने के लिये तीन तरह के कोंस चाहिये होते हैं। इसीलिये, तीन प्रमुख प्रकार के कलर बलाईंड होने के स्थिती होते हैं। अर्थात लाल, हरा या नीले देखने में दिक्कत होता है। इसके अलावा, कुछ लोगों में अतिरिक्त तरह के कलर बलाईंड होने के स्थिती होते हैं। 
Red Color Blindness
Red - Green Color Blindness
अगर किसी को आंखों में एल-कोंस (L cones) नहीं है, तो उसे लाल और हरा रंग नहीं दिखाई देगा, और उसे प्रोटानोपिया (protanopia) कहते हैं। यह हल्का या पूर्ण रूप से हो सकता है। इसमें लाल और हरा रंग एक जैसा ही दिखता है। 
Green Color Blindness
Red - Green Color Blindness
अगर किसी को आंखों में एम-कोंस (M cones) नहीं है, तो उसे लाल और हरा रंग नहीं दिखाई देगा, और उसे डियुटानोपिया (deutanopia) कहते हैं। यह हल्का या पूर्ण रूप से हो सकता है। इसमें लाल और हरा रंग एक जैसा ही दिखता है। 
Blue Color Blindness
Blue Color Blindness
अगर किसी को आंखों में एस-कोंस (S cones) नहीं है, तो उसे नीला और पीला रंग नहीं दिखाई देगा, और उसे ट्राईटानोपिया (tritanopia) कहते हैं। यह हल्का या पूर्ण रूप से हो सकता है। यह बहुत कम लोगों में होता है। 
अधिकतर लोग मिश्रित रूप में कलर बलाईंड होते हैं।

Glaucoma | ग्लूकोमा



1.  किसको कहते हैं

यह एक प्रकार कि बीमारी है, जिसमें कि आंख के अंदर के पानी का प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ जाता है, जिससे कि देखने में परेशानी होती है, या फिर अंधापन भी हो सकता है| समय से जांच और इलाज कराने से अंधापन से बचा जा सकता है|

2.  इसमें कैसा दिखता है?

सामान्य रूप में देखनाग्लूकोमा में देखना

3.  क्यों होता है?

Glaucoma explanation
ग्लूकोमा का कारण
लेंस के आगे के जगह को एंटीरीयर चेम्बर कहते हैं| इसमें स्थित पानी को "एकुअस हयूमर (Aqueous humor)" कहते हैं|"एकुअस हयूमर" लेंस और कोर्निया को आक्सीजन और खाना पहुंचाता है|
"एकुअस हयूमर" सीलियरी बोडी (ciliary body, 1) से बनता है, और पुतली (pupil, 3) से होकर एंटीरीयर चेम्बर (anterior chamber, 4) पहुंचता है, और फिर "कनाल ऑफ शलेम (canal of schlemm, 2)" के द्वारा आंख के बाहर के ब्लड वेस्सल में निकलता है|
अगर किसी कारण से, "एकुअस हयूमर" का बहाव जाम हो जाता है, तो आंखों का प्रेशर बढ़ जाता है, जो कि ओप्टिक नर्व पर दबाव डालता है| अलग-अलग लोगों में यह प्रेशर विभिन्न स्तर तक दबाव डालता है, अर्थात किसी को कम प्रेशर पर भी अधिक असर होता है, तो कोई अधिक प्रेशर में भी बगैर परेशानी के रह सकता है| ओप्टिक नर्व पर दवाब पड़ने से देखने में दिक्कत होता है, या फिर अंधापन भी हो सकता है|

4.  ओप्टिक नर्व किसको कहते हैं?

ओप्टिक नर्व, एक तरह का नस होता है, जो कि आंख को दिमाग से जोड़ता है| यह लाखों नसों को जोड़कर बना होता है| सही तरह से देखने के लिए, ओप्टिक नर्व का स्वस्थ रहना आवश्यक होता है|

5.  क्या प्रेशर का बढ़ना जरूरी होता है?

कुछ लोगों में, बगैर प्रेशर बढ़े भी ग्लूकोमा हो सकता है| इसे नोर्मल टेंशन ग्लूकोमा (normal tension glaucoma) कहते हैं| यह बहुत कम लोगों में होता है|

6.  किसको हो सकता है?

  • अधिक उम्र के साथ
  • जिनके परिवार में किसी को पहले से ग्लूकोमा हो

7.  क्या करना चाहिए?

  • जिनको यह बीमारी होने का रिस्क हो, वो समय से अपने आंख का जांच करायें|
  • अगर कुछ ग्लूकोमा के चिन्ह होने लगे, तो डाक्टर से परामर्श के बाद दवा ले सकते हैं|

8.  जांच में क्या होता है?

  • आंख का जांच डाक्टर से करवाना चाहिए| इसमें आंखों में दवा देकर पुतली को बड़ा किया जाता है| फिर आंख के सामने और पीछे के चेम्बर को देखा जाता है|
  • जांच से आगे के चेम्बर का प्रेशर नापा जाता है| यह भी देखा जाता है कि क्या कोर्निया पतला हो गया है? ओप्टिक नर्व पर कोई प्रेशर का असर हुआ है कि नहीं?

Cataract | केटेरेक्ट (मोतियाबिंद)



1.  किसको कहते हैं?

यह आंखों में लेंस के धुंधलापन को कहते हैं, जिससे कि दिखाई देने में दिक्कत होता है| यह एक या दोनों आंख में हो सकता है|
सामान्य रूप में दिखाई देनामोतियाबिन्द में दिखाई देना

2.  लक्षण

  • धुंधला दिखाई देना
  • अंधेरा में देखने में दिक्कत होना
  • रोशनी नहुत तेज दिखना
  • दोहरा दिखाई देना
  • रंग साफ़ से दिखाई नहीं देना
  • बार बार चश्मा बदलना

3.  जांच

  • "विजूअल एक्यूटी (visual acuity)" - दूर से अक्षर पढ़ने का क्षमता
  • आंखों में दवा डाल कर, डाक्टर द्वारा जांच
  • टोनोमेटरी - आंखों में प्रेशर का जांच
Acute CataractAge related cataractCongenital cataract
एक्यूट केटेरेक्टबुढ़ापे में केटेरेक्टजन्म से केटेरेक्ट

4.  केटेरेक्ट के प्रकार

  • उम्र के साथ
    • यह उम्र के साथ अधिक लोगों में होता है| कुछ लोगों में यह 40 से 50 साल से ही शुरू हो जाता है| लेकिन, अधिक लोगों में 60 साल के बाद दिखाई देने में खास दिक्कत होने लगता है|
    • कुछ नवजात शिशु में केटेरेक्ट हो सकता है|
  • किसी कारण से केटेरेक्ट होना-
    • आंख में कोई बीमारी - ग्लूकोमा, चोट लगने के बहुत समय बाद
    • शरीर में कोई बीमारी - डायबिटीज़, कोई तरह के रेडिएशन के बाद

5.  इलाज - सर्जरी

कुछ लोगों को, जिन्हें कम केटेरेक्ट होता है, उनको चश्मा लगाने से लाभ हो सकता है| लेकिन पूरा इलाज के लिए सर्जरी जरूरी है| अगर आपको केटेरेक्ट के कारण देखने में दिक्कत होता है, जैसे कि पढ़ने में, टी वी देखने में, गाड़ी चलाने में, तो अपने आंख के डाक्टर से सर्जरी के लिए परामर्श लें| साथ ही, अगर आपको अन्य कोई बीमारी है, तो उसको ध्यान में रख कर सर्जरी करना होगा|
केटेरेक्ट का सर्जरी कोई आपातकालीन सर्जरी नहीं होता है| यह आप अपने सुविधा अनुसार करा सकते हैं| अगर आपके दोनों आंखों में केटेरेक्ट है, तो एक आंख के सर्जरी और दूसरे आंख के सर्जरी के बीच में करीब 2 महीना रुकना चाहिए|
सर्जरी करीब 90 प्रतिशत लोग में आंखों का रोशनी वापस ला सकता है| यह एक सीधा-साधा और सुरक्षित सर्जरी होता है| लेकिन ध्यान रखें कि आप अपना सर्जरी किसी विश्वासनीय और साफ़-सुथरे जगह से करायें, क्योंकि इसमें इन्फेक्शन होने का सर्जरी नाकामयाब होने का डर रहता है|

6.  सर्जरी में क्या होता है?

सर्जरी में दो चरण होता है| इस सर्जरी में आंख के आगे के स्तर में, या कोर्निया में, चीरा दिया जाता है| पहले चरण में आंख से खराब लेंस को हटाया जाता है, और दूसरे चरण में एक प्लास्टिक का लेंस को लगा दिया जाता है| आप इस प्लास्टिक के लेंस को देख या महसूस नहीं कर सकते हैं| यह प्लास्टिक का लेंस आपके देखने में मदद करेगा|

7.  सर्जरी के प्रकार

सर्जरी के पहले चरण में आंख से खराब लेंस को हटाया जाता है| यह दो तरह से किया जा सकता है|
  • फेको-इमलसीफेकेशन या फेको (Phaco-emulsification or Phaco) - इसमें कोर्निया में एक छोटा चीरा दिया जाता है| फिर तरंगों द्वारा, लेंस को तोड़कर, उसका घोल बना दिया जाता है| इस घोल को बाहर खींच लिया जाता है| आजकल अधिकतर सर्जरी इस तरह से होता है|
  • एक्स्ट्रा-केप्सुलर सर्जरी (extra-capsular surgery) - इसमें कोर्निया में एक बड़ा चीरा डालकर, लेंस को बिना तोड़े हुए निकाला जाता है|

Deep Vein Thrombosis | डीप वेन थ्रोम्बोसिस



1.  किसे कहते हैं?

जब खून के नसों में खून का थक्का जम जाता है, उसेथ्रोम्बोसिस कहते हैं| अगर यह शरीर के भीतरी नसों में होता है, तो उसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस कहते हैं| यह अकसर पैर के नसों में होता है|

2.  क्या महत्व है?

अगर यह जमा हुआ खून का थक्का, पैर से निकल कर फेफड़ों तक पहुंच जाता तो यह भयानक बीमारी कर सकता है या फिर जानलेवा भी हो सकता है|

3.  क्यों होता है?

डी वी टी खून के जमने से होता है| इसके विभिन्न कारण हैं, लेकिन मुख्य रूप से दो प्रकार के कारण हो सकते हैं|
  • पहला, की खून का बहाव धीरे है या रुक गया है| उदाहरण के लिए नीचे अनेक स्थिती दिए गए हैं, जिसमें कि पैर का उपयोग कम होता है -
    • किसी बीमारी या गर्भ में बिस्तर पर लेटे रहना पड़ रहा है|
    • आप अधिकतर खड़े होकर काम करते हैं, जैसे कि अध्यापक, नर्स, सर्जन या अन्य|
    • आप लंबे समय तक पैर नहीं चलाते हैं, जैसे कि बहुत देर का विमान यात्रा|
  • दूसरा कि खून में जमने का प्रवृती बढ़ गया है| खून में अनेक प्रकार के चीज होते हैं, कुछ का काम होता है किसी कटने पर खून को जमाना और कुछ का काम होता है कि खून के नसों के अंदर खून को बहने देना| सामान्य स्थिती में, ये दोनों तरह के पदार्थ संतुलित मात्रा में रहते हैं| अगर किसी कारण से यह संतुलन बिगड़ता है, तो नसों के अंदर खून जम सकता है| उदाहरण के लिए नीचे अनेक स्थिती दिए गए हैं -
    • किसी भी प्रकार का सर्जरी, जो कि पैर, जांघ, कमर या पेल्विस पर किया गया हो|
    • कैंसर होने से डी वी टी का खतरा बढ़ जाता है|
    • धूम्रपान करने से डी वी टी का खतरा बढ़ जाता है|
    • दिल का बीमारी जिसमें दिल कमजोर हो जाता है | इसे कांजेसटिव हार्ट फैलिअर (congestive heart failure) कहते हैं| इस स्थिती में दिल पूरे तरह से खून को पम्प करने में सक्षम नहीं होता है, और खून पैरों में जमा होने लगता है|
    • पैर के नसों के कमजोरी से जिसमें भी खून पैरों में जमा होने लगता है| सामान्य स्थिती में खून को पैर से दिल के तरफ लौटना चाहिए| इसमें पैर में एक तरफ जाने के लिए वाल्व होता है, जो खून का बहाव को दिल के तरफ रखता है| अगर नसों के वाल्व में कमजोरी आ जाता है, तो खून के बहाव में रुकावट आ जाता है, और फिर पैर में खून जमा होने लगता है|
    • अगर आप गर्भ निरोधक गोली (oral contraceptive pills) लेते हैं
    • अगर आपको मोटापा है
    • अगर आपको मेनोपौज़ (menopause) हो चुका है

4.  लक्षण

आधिकांश समय इसका कोई लक्षण नहीं होता है| लेकिन जब खून का थक्का जमा होने लगता है, तब इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं| कुछ लक्षण नीचे दिए गए हैं, जो कि पैर में होते हैं| यहां पैर से मतलब है तलवा से लेकर जांघ तक कोई भी जगह|
  • पैर का फूलना
  • पैर में दर्द होना
  • पैर लहर्ना
  • पैर में अत्यन्त खुजली होना
  • पैर का रंग बदलना - लाल या नीला पड़ जाना

5.  जांच

  • सोनोग्राम (sonogram) - मशीन द्वारा बाहर से नसों का फोटो खींचना
  • वेनोग्राफी (contrast venography) - नसों में सुई द्वारा एक तरह रंग दिया जाता, और फिर उसका फोटो खीचा जाता है
  • इम्पेडांस प्लेथिस्मोग्राफी (impedance plethysmography) - इसमें बिजली के तरंगों से इस रोग का निदान किया जाता है|

6.  इलाज

इसमें खून के थक्का को गलाने के लिए दवा लिया जाता है| यह दवा अस्पताल में शुरू किया जाता है| ये दवा खून को पतला करते हैं, इसीलिय अनेक बार खून का जांच किया जायेगा| ये दवा करीब 6 महीनों तक लेने पड़ सकते हैं| साथ ही उन कारणों को पहचानना होगा जिससे आपको यह बीमारी हुआ, और उसे हटाने के लिए आपको उपाय करना होगा|

Atrial Septal Defect | एट्रेअल सेप्टम डिफेक्ट



1.  सामान्य दिल का बनावट

दिल में चार चेम्बर होते हैं, दो ऊपर और दो नीचे|
  • उपर के चेम्बर को एट्रियम (atrium) कहते हैं, जैसे कि बायां या लेफ्ट एट्रियम (left atrium) औरदायां या राईट एट्रियम (right atrium)| दोनों एट्रियम के बीच एक दीवार होता है, जिसे एट्रेअल सेप्टम (atrial septum) कहते हैं|
  • नीचे के चेम्बर को वेंट्रिकल (ventricle) कहते हैं, जैसे कि बायां या लेफ्ट वेंट्रिकल (left ventricle)और दायां या राईट वेंट्रिकल (right ventricle)| दोनों वेंट्रिकल के बीच एक दीवार होता है, जिसेवेंट्रिकुलर सेप्टम (ventricular septum) कहते हैं|

2.  इस बीमारी में क्या होता है?

इस बीमारी में राईट एट्रियम और लेफ्ट एट्रियम के बीच में एक छेद होता है, जिससे कि लेफ्ट एट्रियम से ऑक्सीजन युक्त खून और राईट एट्रियम से ऑक्सीजन रहित खून का मिश्रण होता है|

3.  सामान्य दिल में खून का बहाव

  • लेफ्ट एट्रियम → लेफ्ट वेंट्रिकल → एओर्टा → शरीर

4.  इस बीमारी में खून का बहाव

लेफ्ट एट्रियम से दो तरफ के लिए खून का बहाव होता है|
  • सामान्य बहाव: लेफ्ट एट्रियम → लेफ्ट वेंट्रिकल → एओर्टा → शरीर|
  • असामान्य बहाव: लेफ्ट एट्रियम → राईट एट्रियम → राईट वेंट्रिकल → लंग्स → लेफ्ट एट्रियम | इस तरह से इसमें खून घूम कर वापस वहीं पहुंच जाता है, जहां से शुरू हुआ था| इस कारण से, दिल पर अधिक जोर पड़ता है|

5.  प्रकार

एट्रेअल सेप्टम डिफेक्ट चार प्रकार के होते हैं| यह इस बात पर निर्भर करता है कि सेप्टम में छेद कहां स्थित है?
  • ओस्टीय्म सेकंडम | Ostium secundum
  • ओस्टीय्म प्राईम्म | Ostium primum
  • साईनस वेनोसस | Sinus venosus
  • पेटंट फोरमेन ओवेल | Patent foramen ovale

6.  लक्षण

किसी मरीज के एट्रेअल सेप्टम में कहां छेद हैं, कितने छेद हैं, कितने बड़े छेद हैं, और भी कोई दिल का बीमारी है, और भी कोई अन्य अंग में बीमारी है, उम्र क्या है, और अन्य बातों के उपर लक्षण निर्भर करता है|
  • छोटे छेद का पता भी नहीं चलता है, और बच्चे पर कोई खराब असर नहीं करते हैं|
  • बड़े छेद या बहुत सारे छेद बच्चे पर खराब असर कर सकते हैं|

7.  जांच

  • डाक्टर द्वारा शारीरिक जांच
  • एकोकार्डियोग्राम (echocardiogram) - दिल का अल्ट्रा साउंड

8.  इलाज

  • छोटे छेद अपने से बंद हो जाते हैं| इसके लिए कुछ महीने रुक कर, दिल का अल्ट्रा साउंड करा लेना चाहिए|
  • बड़े छेद, जो अपने से बंद नहीं होते हैं, उनको सर्जरी से बंद करवाना चाहिए| बगैर इलाज के, इस छेद से दिल और लंग्स पर स्थाई हानि पहुँच सकता है| इलाज दो प्रकार के होता हैं -
    • नॉन सर्जीकल इलाज (non - surgical treatment) - मतलब कि केथीटर द्वारा इलाज| केथीटर (catheter), एक पतली नली को कहते हैं, जो कि जांघ के ब्लड वेस्स्ल से घुसा कर, दिल तक पहुंचे हैं| फिर उसी नली से एक पैबंद लगा कर छेद को बंद किया जाता है| ध्यान रहे कि सभी प्रकार के छेद, इस तरीके से बंद नहीं किया जा सकता है| इस बात पर निर्भर करता है कि, कितना बड़ा छेद है, छेद का किनारा मजबूत है कि नहीं, बहुत सारे छेद हैं, और अन्य बातें|
    • ओपन हार्ट सर्जरी (open heart surgery) - मतलब कि छाती और दिल खोल कर, छेद को बंद करना | छोटे छेद को सिलाई से बंद किया जाता है, और बड़े छेद के लिए पैबंद लगाया जाता है| यह एक बड़ा सर्जरी होता है, और बच्चे पर जीवन भर के लिए निशान छोड़ देता है| सर्जरी के 2 महीने बाद, बच्चा अपना सामान्य तरीके से खेल-कूद सकता है| इस सर्जरी के बाद आयु में, अन्य व्यक्ति के अनुपात में, आयु में कोई फर्क नहीं पड़ता है|

Cardiac stress test | कारडीएक स्ट्रेस टेस्ट



1.  "कारडीएक स्ट्रेस टेस्ट (cardiac stress test)" क्या होता है?

यह एक जांच है जिससे पता चलता है की आपके दिल के रक्त के नालियों में कितना रुकावट (blockage) है| इस टेस्ट को "एकसारसाइज़ टेस्ट (exercise test)" या "ट्रेडमिल टेस्ट (treadmill test)" भी कहते हैं|

2.  "कारडीएक स्ट्रेस टेस्ट" का सिद्धांत क्या है?

व्यायाम करने से आपके शरीर पर जोर पड़ता है| शरीर को अधिक आक्सीजन चाहिए होता है| इसके लिए शरीर को खून का बहाव बढाना पड़ता है| इसके लिए दो तरह से शरीर काम करता है - एक कि दिल का धड़कन मजबूत हो जाता है और दूसरा कि दिल के धड़कने का गति तेज हो जाता है| इस टेस्ट में दिल के धड़कने के बारे में जाना जाता है| यह भी पता चलता है कि दिल को सही तरह से खून मिल रहा है कि नहीं| साथ ही टेस्ट यह बताता है कि किस प्रकार का और कितना जोर का व्यायाम आप सह सकते हैं|

3.  यह टेस्ट कब किया जाता है?

अगर आपको नीचे लिखे हुए में से कुछ भी है तो आपके डॉक्टर आपको यह टेस्ट लेने के लिए कह सकते हैं -
  • क्या आपको दिल के दौरा पड़ने का रिस्क है?
  • क्या आपके दिल के धड़कने में कोई समस्या है?
  • आप कितना व्यायाम कर सकते हैं, बगैर कोई दिल के दौरा के चिंता के?
  • आपको दिल का दौरा या सर्जरी हो चुका है, और आपके दिल का हाल मालूम किया जा रहा है|
  • आपको दिल के दौरा से संबंधित कोई लक्षण हो जैसे कि सांस फूलना, दर्द होना, इत्यादी|
  • अगर आपके कोई अन्य जांच में समस्या है जैसे कि खून में लिपिड का जांच या दिल का ई सी जी (ECG | EKG) |

4.  यह जांच कैसे किया जाता है|

इसमें आपको साइकिल चलाने दिया जा सकता है या फ़िर ट्रेडमिल पर चलने या दौड़ने को कहा जा सकता है| ट्रेडमिल के बारे में यहां पढ़ें| इस दौरान आप तारों से अनेक कंप्यूटर से जुड़े होते हैं जो कि आपके दिल के गतिविधीयां को रिकॉर्ड करते रहता है| इसमें अनेक बार ई सी जी (ECG | EKG) भी किया जाता है| साथ ही हाथ में लगे यन्त्र से खून में कितना आक्सीजन है या आक्सीजन सचुरेशन (oxygen saturation) को नापा जाता है| आपके सांस के गति, आपके दिल के धड़कन के गति, आपका थकावट, आपका रक्तचाप (blood pressure) को भी रिकॉर्ड किया जाता है|

5.  इस जांच में किस बात का डर रहता है?

अगर आपके दिल के नालियों में बहुत अधिक रुकावट है, तो व्यायाम करने से दिल पर बहुत जोर पड़ता है| इस जांच के दौरान तेज चलने या दौड़ने से दिल के दौरा पड़ने का डर रहता है| अगर टेस्ट के दौरान आपको कोई भी परेशानी हो, जैसे की चक्कर आना, दर्द उठना, कमजोरी लगना इत्यादी, आप तुरंत अपने टेस्ट करने वाले कर्मचारी या डॉक्टर को बतायें| हो सकता है की आपका जांच बीच में ही रोकना पड़े| ध्यान रहे की टेस्ट समय के साथ कठिन होते जाता है, और आपको उसके साथ चल पाने में दिक्कत हो सकता है| इसीलिए टेस्ट में लगातार आपके सारे गतिविधियों को रेकॉर्ड किया जाता है|

6.  टेस्ट के पहले क्या करना होता है?

आपने किसी संबन्धी के साथ यह जांच कराने जाएं | आपको अपना दवाई के बारे में डॉक्टर से पहले बात कर लेना चाहिए की सभी दवाई को खाना है, या किसी को कुछ समय के लिए बंद कर देना होगा| अगर आपको डायबिटीज़ है तो यह जरूर पूछ लें कि आप कब खा सकते हैं और क्या दवा लेना चाहिए| अगर आप गर्भवती हैं तो अन्य कोई स्थिती है, तो फिर अपने डॉक्टर को बता कर रखना चाहिए, जो यह जांच आप पर करेगा| अगर आप कोई दवा खाते हैं तो उसके बारे में अपने डॉक्टर को सही तरह से बतायें, और अगर याद न रहे तो दवा का पत्ती या शीशी साथ में ले आयें| अगर आयुर्वेदिक या अन्य कुछ और खा रहे हों, तो भी उसके बारे में अपने डॉक्टर को ज्ञांत करायें|

7.  टेस्ट के बाद आपको क्या बात ध्यान में रखना चाहिए?

टेस्ट आपके दिल पर जोर डालता है, और दिल के दौरा पड़ने का सबसे बड़ा खतरा रहता है| अगर आपको टेस्ट के बाद, घर पहुंचने पर भी कोई भी परेशानी हो जैसे कि दर्द उठाना, पसीना आना, उल्टी होना और अन्य कोई दिल के दौरे का लक्षण हो, तो तुरंत अपने निकटतम अस्पताल या डॉक्टर के पास जाना चाहिए| साथ ही अपने डॉक्टर से सारा दवा और खाना के बारे में पूछ लेना चाहिए|